Monday, July 22, 2013

चाँद हाँ जो प्रतीक है
प्रेम और सौन्दर्य का
इंसा ने श्रृंगार रस से सजा
जोड़े इससे भाव
बच्चो ने मामा कहा
जोड़े नेह संग ख्वाब ..........

चांदनी इसकी प्रेमियों को
रही रिझाती
अमावस के चाँद सी
विरह नहीं है भाती
चाँद को पाना जुस्तजू
प्रेमी ह्रदय सजाती........

आज फिर मानुष मन में है
इक हुक उठी
चाँद पे घर बसाने की चाह
आज मन बसी.......

प्रकृति और पृथ्वी से
कर खिलवाड़ वो हारा
अब लालसाओ ने उसकी 
चाँद को है निहारा..........

क्या समझ पायेगा अब भी
बावरा सा इंसान
या इच्छाए लील लेंगी उसकी 
सौन्दर्य प्रकृति का ..........


4 comments:

  1. लालसाएं मिटती नहीं, प्रकृति पिस जाती है !

    ReplyDelete
  2. कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

    ReplyDelete

  3. बहुत सुंदर और सार्थक रचना


    शुभकामनाये

    यहाँ भी पधारे
    गुरु को समर्पित
    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_22.html

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति है
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

    ReplyDelete

शुक्रिया