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Friday, November 29, 2013
Thursday, November 14, 2013
मन की आहट
सुनो ए मन मेरे
एक रिश्ता है दरमियाँ मेरे और तेरे
उम्र के पड़ाव रिश्तों की खराश से परे
अभी तक जाना है मैंने तेरे
खिलखिलाते ठहाकों को जो
ख़ुशगवार झोंके से छूकर गुजर जाते
मेरे चेहरें पर गिरे गेसुओं को
प्रेम से स्निग्ध भावों को
जो तेरे अपने होने का भान करा जाते
बड़ी शिद्दत से मुझे
और सहला जाते मेरी उदासी को
तुम कहते हो मत कहलवाओ मुझसे
वह जो मैं कहना नहीं चाहता
बहुत कुछ आहटों से समझा करो
जिस दिन आहटों को
समझना सीख जाओगी
उस दिन कहने सुनने को
कुछ ना रहेगा शेष दरमियाँ हमारे
मूक बैठकर दूर रहकर भी
कर पायेंगे हर पहर हम
बातें अनगिनत बातें
बातें जो मैं बुनूं तुम समझ पाओ
बातें जो जोड़ेंगी हमें कुछ इस तरह
लगने लगूंगा तुम्हारा ही हिस्सा मैं
इसीलिए ए मन सीख रही हूँ मैं
महसूस करना पहचानना
एहसासों की आहट
उसके पदचापों की दस्तक
सुगबुगाते से एहसास
झिझक की परिधि में
जकड़े मूक से भाव
लेते अंगड़ाई स्वप्निल सी आँखों में
झिलमिलाते दीपों की बाती में
झांकते मेरी बड़ी बड़ी आखों में
मानो पूछ रहे हो मुझसे वो
सुनो पहचाना हमें
समझ रही हो ना तुम आहट हमारी
उम्र के पड़ाव रिश्तों की खराश से परे
अभी तक जाना है मैंने तेरे
खिलखिलाते ठहाकों को जो
ख़ुशगवार झोंके से छूकर गुजर जाते
मेरे चेहरें पर गिरे गेसुओं को
प्रेम से स्निग्ध भावों को
जो तेरे अपने होने का भान करा जाते
बड़ी शिद्दत से मुझे
और सहला जाते मेरी उदासी को
तुम कहते हो मत कहलवाओ मुझसे
वह जो मैं कहना नहीं चाहता
बहुत कुछ आहटों से समझा करो
जिस दिन आहटों को
समझना सीख जाओगी
उस दिन कहने सुनने को
कुछ ना रहेगा शेष दरमियाँ हमारे
मूक बैठकर दूर रहकर भी
कर पायेंगे हर पहर हम
बातें अनगिनत बातें
बातें जो मैं बुनूं तुम समझ पाओ
बातें जो जोड़ेंगी हमें कुछ इस तरह
लगने लगूंगा तुम्हारा ही हिस्सा मैं
इसीलिए ए मन सीख रही हूँ मैं
महसूस करना पहचानना
एहसासों की आहट
उसके पदचापों की दस्तक
सुगबुगाते से एहसास
झिझक की परिधि में
जकड़े मूक से भाव
लेते अंगड़ाई स्वप्निल सी आँखों में
झिलमिलाते दीपों की बाती में
झांकते मेरी बड़ी बड़ी आखों में
मानो पूछ रहे हो मुझसे वो
सुनो पहचाना हमें
समझ रही हो ना तुम आहट हमारी
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Thursday, November 7, 2013
गुरूर
सफलता आसमान पर
बिठा देती है इंसान को
मन लेता है हिलोरे
चाहतें है कहती
आसमां तू छू ले
अमृत मंथन में मिला
जैसे अमृत संग विष भी
उसी तरह सफलता देती है
नाम शौर्य के साथ
गुरुर अभिमान भी
सफ़लता की हर पायदान को
चूमते कदम गर हो दृढ़
तो रहता है मन
यथार्थ धरातल से जुड़ा
उसी पर टिका
सहज सरल सा
लेकिन जरा सी लापरवाही
उड़ने लगता है जीव गगन में
छूने लगता चाँद और सितारे
और फिर ठोस धरातल
रह जाता दूर धूमिल होता
हो जाता ओझल नज़रों से
चकाचौंध चुंधिया देती आँखों को
और गुरुर का चश्मा
चढ़ जाता सपनीली आँखों पर
उंचाई पर पहुचने का नशा
और उसकी लत
इंसा भी ना रहने देती
पतन को कर अनदेखा
छोड़ सबको पीछे
आगे बढ़ जाने की लालसा
विशालकाय सर्प सी कुंडली
कसती अपना घेरा
सब लगता क्षुद्र सा
और अहम् सर
चढ़कर है बोलता
केवल मैं ही रह जाता करीब
और बाकी सब जाता पीछे छूट
बिठा देती है इंसान को
मन लेता है हिलोरे
चाहतें है कहती
आसमां तू छू ले
अमृत मंथन में मिला
जैसे अमृत संग विष भी
उसी तरह सफलता देती है
नाम शौर्य के साथ
गुरुर अभिमान भी
सफ़लता की हर पायदान को
चूमते कदम गर हो दृढ़
तो रहता है मन
यथार्थ धरातल से जुड़ा
उसी पर टिका
सहज सरल सा
लेकिन जरा सी लापरवाही
उड़ने लगता है जीव गगन में
छूने लगता चाँद और सितारे
और फिर ठोस धरातल
रह जाता दूर धूमिल होता
हो जाता ओझल नज़रों से
चकाचौंध चुंधिया देती आँखों को
और गुरुर का चश्मा
चढ़ जाता सपनीली आँखों पर
उंचाई पर पहुचने का नशा
और उसकी लत
इंसा भी ना रहने देती
पतन को कर अनदेखा
छोड़ सबको पीछे
आगे बढ़ जाने की लालसा
विशालकाय सर्प सी कुंडली
कसती अपना घेरा
सब लगता क्षुद्र सा
और अहम् सर
चढ़कर है बोलता
केवल मैं ही रह जाता करीब
और बाकी सब जाता पीछे छूट
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