बीते समय की है बातें
भूले बिसरे से है फ़साने
ख़ुशी और गम होते थे
साझा से
सांझी होती थी छत
एक रसोई की खुशबू से
महकता था
दूजे घर का आँगन
पडोसी की ख़ुशी से
थिरकते थे कदम जहाँ
उनके गम से
नम हो जाते थे
दिल के जज़्बात भी ........
आज भी होती है साझेदारी
फर्क फ़कत इतना है
पडोसी की ख़ुशी
दे जाती है
गम के काले साये
अमावस की रात से
कुछ बेचैनी साँसों को
और गम उसका
कर जाता है रोशन
आँखों के टिमटिमाते से दीये......
आधुनिकता का जामा पहने
गरूर से नैन मटकाती सी
साझेदारी
दंभ से कहती
दस्तूर निभा रही
मैं भी जमाने का
रास आ ही गया
हुनर मुझे
मुखौटें लगा चेहरे पर
नित नए मुस्कुराने का
*************
भूले बिसरे से है फ़साने
ख़ुशी और गम होते थे
साझा से
सांझी होती थी छत
एक रसोई की खुशबू से
महकता था
दूजे घर का आँगन
पडोसी की ख़ुशी से
थिरकते थे कदम जहाँ
उनके गम से
नम हो जाते थे
दिल के जज़्बात भी ........
आज भी होती है साझेदारी
फर्क फ़कत इतना है
पडोसी की ख़ुशी
दे जाती है
गम के काले साये
अमावस की रात से
कुछ बेचैनी साँसों को
और गम उसका
कर जाता है रोशन
आँखों के टिमटिमाते से दीये......
आधुनिकता का जामा पहने
गरूर से नैन मटकाती सी
साझेदारी
दंभ से कहती
दस्तूर निभा रही
मैं भी जमाने का
रास आ ही गया
हुनर मुझे
मुखौटें लगा चेहरे पर
नित नए मुस्कुराने का
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