Friday, September 6, 2013

गुनाह

खबर हाँ खबर
रोज़ बहुत सी ख़बरों संग
होती है शुरुवात दिन की
कुछ खबर कर देती
मन खट्टा .......

ऐसे ही एक खबर
दिल को छलनी कर गई
मात्र छः साल की वो मासूम
सहमी सी थी कटघरे में खड़ी
कसूर या महापाप ......

उसका फ़कत इतना ही
अमरुद जो था उसके
नन्हें सुकोमल हाथों में था
उसने तोड़ा उसे
पड़ोस के घर से ही ......

पहले का समय आह
पड़ोसी सुख-दुःख के साथ
खाना पीना मिठास
अपने घर की करते थे साझा
आज देखो तो हाय
शनि की कुटिल महादशा ......

चंद अमरुद तोड़ना
बन गया उसका गुनाह
आह मूंह का स्वाद
कसैला सा क्यों
जाने हो चला .....

संवेदनायें हैं मर रही
मानवता है दम तोड़ती
आह पीड़ा ह्रदय की
मूक पीब से भरी ......

सोच निज में सिमटती
वेदना बधिर है हो गई
सकुंचित हो रहा हृदय
आधुनिकता हो रही हावी
मन अपने में है राज़ी .......

दिल करे पैरवी खुद की
हो गया बेमुरव्वत ये पाजी
खुद ही बन गया है देखो
वकील कह लो इसे या क़ाज़ी .....

वक़्त की बेदिली से यारों
दिल है अपना भर गया
संवेदन हीन हुआ मानुष
निज में है सिमट रहा
स्वार्थ हो रहा है हावी
गर्त में है गिर रहा ......

4 comments:

  1. नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (08-09-2013) के चर्चा मंच -1362 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार-8/09/2013 को
    समाज सुधार कैसे हो? ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः14 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra





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  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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शुक्रिया