Friday, December 6, 2013

तुम्हारे लिए

सुनो मैं छोड़ आई हूँ
पास तुम्हारे
एहसासों की तपिश
प्रेम की खुशबू
स्पर्श और छुअन
सिरहाने रख आई हूँ
कुछ हिदायते
सर्द सी ठिठुरती
कुछ बेचैनी
और कुनकुनी धूप सी
कुछ मुस्कुराहटें
पलंग की चादर से बाँध आई हूँ
कुछ यादें
और कंबल में सहेज रख आई हूँ
मीठी सी दुआ
बालकनी से झांकता छोड़ आई हूँ
इंतज़ार को
लौट तो आई हूँ मैं पर लगता है
जैसे खुद को ही छोड़ आई हूँ
पास तुम्हारे
महसूस करना हूँ हर पल
साथ तुम्हारे
महकती चहकती मुस्कुराती सी
हाँ तुम्हारी ही किरण
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