Wednesday, November 30, 2011

कौन हूँ मैं?

कौन हूँ मैं??????????

हर युग में छला मुझे मेरे अपनों ने ही,

कभी सीता बन अग्निपरीक्षा दी मैंने,

कभी द्रोपदी बन सही चीर हरण की पीड़ा मैंने !!



आज मैं आधुनिक नारी कहलाती हूँ,

ज़माने संग कदम से कदम मिलाती हूँ,

और इठलाती हूँ अपने आप पर,

शायद इतने समय दबाये कुचले जाने की,

पीड़ा ने ही भर दी है उच्खलता मुझमे !!



चाहती हूँ अपराजित बनना छलना चाहती हूँ,

अपने छलिया को जिनके हाथों छली गई हर युग में,

लेकिन भूल जाती हु क्यों मैं आज भी जब घटित होता है,

कुछ गलत हर ऊँगली उठ जाती है मेरी और ही,

हर आँख में छिपे आक्षेप धिधकारते मुझे ही !!



मैला होता आँचल मेरा ही जब उड़ता गर्त कहीं,

अपनी धरोहर को सहजने का भार है मेरे ही कंधो पर,

हर दुःख हंसकर सहती फिर भी अबला कहलाती मैं !!



यह इन्तहा नहीं है मेरे इम्तिहानो की,

मुझपर उठती उंगलिया पकडे खड़ी मेरी परछाई भी,

पाक साफ़ दामन लिए मुस्कुराते छलने वाले मुझे,

और मैं खड़ी अपनी ही परछाई के अनगिनत सवालो से घिरी,

सोच रही आज भी यहीं कौन हूँ मैं????????????............किरण आर्य

Friday, October 7, 2011

तुम बिन

ए मेरी जीवन संगिनी तुम कहाँ हो गई हो ग़ुम? 
जैसे शाम होते ही सूरज,
छिप जाता है सागर के आगोश में,
वैसे ही तुम खो गई क्यों चिर निंद्रा में,
जब थी तुम पास मेरे हर क्षण,
तब जान ही नहीं पाया क्या अहमियत है,
तुम्हारे होने की इस जीवन में,
आज जब तुम नहीं हो संग मेरे,
तब जीवन की धूप ने झुलसा दिया तन और मन,
और अहसास हुआ अपने अधूरेपन का,
हूँ शून्य मात्र मैं तुम बिन,
वैसे ही जैसे पतझड़ में फूलो के,
गिरने से आती है विरानी,
तुम थी तो जीवन था स्वछंद पक्षी समान,
हर चिंता और दुःख को तुम्हारी हंसी और प्यार,
बहा ले जाता था दूर अनंत में कहीं,
आज फिर तुम संग बीते पलों को जीना चाहता हूँ,
तुम्हारे प्यार को सहेजना चाहता हूँ,
जो फिसल गए मुठ्ठी से मेरी रेत के मानिंद,
एक बार फिर उन पलों को समेटना चाहता हू,
तुम संग जीना चाहता हूँ,
और बस यहीं कहना चाहता हूँ,
तुम बिन छिन्न भिन्न हो बिखर गया जीवन मेरा,
लौट आओ एक बार फिर सावन बन, 
बरस जाओ फिर जीवन में मेरे खुशियाँ बन..........किरण आर्य

Sunday, September 25, 2011

दिल बनाम आलू


प्रति जी से सुनी जब यह बात, दिल जिसे समझे थे,
हम कभी पागल, दीवाना, बच्चा और अनजाना,
वो तो आलू है जी हा दिल तो आलू है !

सुनकर उनकी यह अनोखी बात,
हंसी की लहर ने शोभित किया मुखमंडल,
और मन में लहराए जज़्बात वाह जनाब !!

यह दिल तो बड़ा चालू निकला, समझे थे क्या इसे,
यह तो आलू निकला हाजी हा आलू निकला !!

सब्जिओ के बढते देख भाव,
दिल ने भी नेताओ जैसे बदले पैतरे है,
इस दिल के भी देखो अजब नखरे है !!

सोचा दिल ने आलू की बदती लोकप्रियता को,
क्यों भुनाया जाए,
अब अपने आपको आलू ही कहलाया जाए !!

सब्जिओ में आलू है सदाबहार,
तो आज इसे ही पहनते है विजय हार,
तो इस तरह जनाब आज दिल यह अब आलू है,
देखा आपने भी, यह कितना चालू है............... किरण आर्य

जीवन एक पाठशाला


जीवन एक पाठशाला है,
यहाँ हर कदम पर जिंदगी एक पाठ पदाती है,
कभी हँसाती है तो कभी रुलाती है !

यहाँ हर कदम पे खड़ी खुशिया पंख पसार,
मिलते है यहाँ दुःख और गम भी अपार,
लेकिन फिर भी यह जिंदगी,
खुशिओ संग खुश होती,
और दुखो में हमें सहेजती,
निरंतर आगे बदती जाती है !!

कभी सेहरा में भटकते मुसाफिर की मृगतृष्णा सी,
कभी सागर की डूबती उतरती लहरों सी,
कभी जेठ की दुपहरी की तपन सी,
कभी फूलो की खुशबू से निर्मल झोंखे सी,
जिंदगी तेरे हर रंग लगे न्यारे है !!

हम खुशिओ संग खिलखिलाते,
गमो से पार पाते,
जब भी मुस्कुराते यहीं कहते,
जिंदगी लगती कभी तू अपनी,
तो कभी नितांत बेगानी सी !!!

फिर भी तुझसे मुझे प्यार है,
तुझसे ही है खुशिया मेरी,
तू ही तो मेरी पहचान है,
इसीलिए तो जिंदगी,
तुझमे बसी मेरी जान है...........किरण आर्य

चुहल


एक दिन पत्नी अपने पति के पास आकर,
बड़े प्यार से मुस्कुराते इठलाते हुए बोली,
सुनो जी आज मैं तुम्हे एक शेर सुनाती हूँ,
आज तुम्हे अपने दिल की बात बताती हूँ !

पति ने अपनी हैरानी को दबाते हुए,
निपोरे अपने दांत तुरंत कहा इरशाद इरशाद,
पत्नी ने फेंकी एक जालिम मुस्कान और बोली!!

दिल चीर के दिखाऊ तो दर्द ढूंड नहीं पाओगे,
दिल चीर के दिखाऊ तो दर्द ढूंड नहीं पाओगे,
दर्द तो पैरो में है अब बोलो कब दबाओगे ?

पति थोडा कसमसाया और हंसकर बोला,
श्रीमतीजी सुनकर तुम्हारी प्यारी सी बात,
मेरे भी दिल में जन्मे है कुछ जज़्बात,
कहो तो आज मैं भी कुछ फर्माऊँ ?

तुमको अपने दिल की बात समझाऊ,
पत्नी ख़ुशी से इठलाकर बोली,
प्रिय क्या यह भी है पूछने की बात?
सुनने को बेताब हूँ तुम्हारे दिल की बात !!

पति बोला तुम पैरो की बात करती हो,
एक बार कहकर तो देखो प्यार से,
प्रिय पैर क्या दबा दू गला तुम्हारा,
तुम भी पा जाओगी जन्नत,
और मेरे लिए भी जीवन होगा इक सौगात !!

कह नहीं सकता कितना हो गया मैं बेजार,
मुश्किल से मिला है यह मौका सुनहरा,
तो सोचता हूँ क्यों छोड़ना इसे,
आज तो धो ही डालू मैं अपने हाथ, मैं अपने हाथ.................किरण आर्य


Friday, September 23, 2011

नफरत

नफरत से किसने क्या पाया है,
यह तो वृद्ध की जर्जर काया है !!
नफरत सोच को कर जाती है कुंद,
फिर जाने क्यों लोग लगाते है,
गले इसे आँखों को अपनी मूँद ?
कर जाती अपनों को भी बेगाना,
हर रिश्ता लगता फेर में इसके अनजाना !!
दे जाती घाव ऐसे जो बन नासूर,
जीवन भर का दे जाते है दर्द,
हम रह जाते सोचते बस यहीं,
कर बैठे हम ऐसा क्या क़सूर ?
बन बैठे आज अपने ही बेगाने,
जिंदगी ने लिख दिए दर्द के फसाने,
पैदा कर जाती खाई यह रिश्तो में ऐसी,
जो भर पाती आजीवन,
लगता जीवन कांटो की सेज सामान !!
फिर क्यों नहीं समझते है हम?
नफरत से किसने क्या पाया है,
यह तो वृद्ध की जर्जर काया है !!
ऐसे में कर बड़ा दिल को अपने,
सोचे ये इंसान गलतियो का पुतला है,
निकाल फेंके इसे दिल से अपने,
तभी रह पाएगी सकारात्मक सोच अपनी,
और जीवन होगा खुशिओ की बगिया सामान............किरण आर्य

सुख

एक दिन जा पहुचे हम एक होटल मे,
सामने से बैरा आया आते ही उसने अदब से सिर झुकाया
हमने भी मुस्कुरा कर मेन्यू कार्ड माँगाया,
और फिर अपनी पसंद का सांभर डोसा ऑर्डर कराया
जैसे ही खाने बैठे अनायास ही ध्यान बगल की टेबल से जा टकराया

वहाँ बैठे एक जनाब चटकारे लेकर खा रहे थे मटर पुलाब
उन्हे चटकारे लेते देख मन थोड़ा कुम्लाया,
कि काहे हमने साम्बर डोसा माँगाया,
फिर कुछ सोचा हमने मन को अपने समझाया
और सांभर डोसा खाने मे दिल को अपने लगाया
वैसे भी यह तो फ़ितरत है इंसान की
सामने वाले की प्लेट का खाना मन को लुभाता है
फिर चाहे स्वाद उसमे ज़रा भी नही आता है
किसी ने सच ही कहा है दोस्तो
दूसरे की प्लेट के व्यंजन चाहे दिल को बहुत लुभाता है
लेकिन सच्चा सुख तो अपने थाली के भोजन मे ही आता है......... किरण आर्या.  

प्यार के मायने

मुझे तुमसे प्यार है अपार, बेशुमार
यह चंद शब्द कर देते है मन को झंकृत
भर देते एक नवीन अहसास और उमंग,

बचपन में माँ का आँचल लगता है सबसे प्यारा
वो ही तो होती है प्यार की प्रतिमूर्ति
हर पल डगमगाते क़दमों को देती वो सहारा
हम कहते मुझे तुमसे प्यार है अपार, बेशुमार,

कुछ बड़े होने पर लगते है दोस्त सबसे प्यारे
उनके साथ बीते पल ही लगते हैं सबसे न्यारे
हम कहते मुझे तुमसे प्यार है अपार, बेशुमार,

जब रखते हैं कदम हम यौवन की दहलीज़ पर
तो कोई अनजाना लगने लगता सबसे प्यारा
उसके सपने, उसकी ही बातें लगती हैं जीवन सारा
हम कहते मुझे तुमसे प्यार है अपार, बेशुमार,

जब हाथ थामे उसका चलते जीवन राह पर
तब अच्छाई संग बुराइयो से भी होते रूबरू
जीवन के सत्य और यथार्थ संग होता जीवन शुरू
हम कहते मुझे तुमसे प्यार है अपार, बेशुमार,

फिर जीवन मे गूँजती बच्चों की प्यारी सी किलकारी 
जीवन भर जाता खुशियों से, हँसी लगे उनकी प्यारी
हम कहते मुझे तुमसे प्यार है अपार, बेशुमार,

क्या समय के साथ बदलते हैं चाहत के मायने
या इंसान की जरूरतें तय करती है चाहत के पैमाने,
जब ख़तम होती है ज़रूरत एक की
तो होती है फिर शुरू, खोज प्यार की...... 
हम कहते मुझे तुमसे प्यार है अपार, बेशुमार,

नही यह प्यार नही, स्वार्थ है यह तो 
प्यार तो है दूसरों की खुशी से खुश होना
और हंसते हुए प्यार से सभी का साथ निभाना...
अगर कर पाते ऐसा तो कहना होता सार्थक 
मुझे तुमसे प्यार है अपार बेशुमार.........                                          किरण आर्या