Thursday, July 3, 2014

ग़ज़ल

होता है कभी ऐसा भी ज़माने में
ग़ुम जाती है हस्तियां तहखाने में! 


टूटता है भ्रम जब किसी आशिक़ का
सिसकता है दिल पड़ा मैखाने में ! 


इन हसीनो से कह दो कि ना इतराए इतना
क्यूं आता है मज़ा आशिक़ों को तडपाने मे!



मुहब्बत में जब भी रूठता है कोई
है अपना ही मज़ा रूठे को मनाने में ! 


मृगतृष्णा सी है तपिश दिल के भरमाने में
कट ना जाए उम्र युहीं आने जाने में ! 


ये इश्क़ का जूनून है कोई सौदा नहीँ यारों
टूट जाते हैं दिल आजमाइशों के पैमाने में !