Friday, August 10, 2012

यदा जीवंत



मौत एक शाश्वत कटु सत्य,
एक अटूट मौनएक चरम पथ !!

डर उसके मौन अठहास का नही
वरन अपनो से बिछूड़ने का,
उनकी विरह वेदना और रुदन का !!

डर एक टूटन का बिखरन का,
अहसासो के मरने का बेबस चुभन का !!

लेकिन यह तो होना ही है एक दिन,
तो फिर क्यू ना दे सहर्ष स्वीकृति
जिए हसी खुशी बाकी बचे पल !!

हमारी आपेक्षाए है रोड़ा राह मे सबसे बड़ा
तो क्यू ना दे जाए कुछ यादे ऐसी जो मिटा दे तृष्णा सारी....!!

जब हम जाए तो चाहे आँखो मे हो आँसू यादो के हमारी
लेकिन होटो पर हो मुस्कान सबके प्यारी प्यारी.......,
हमारी जिंदादिली, हसी और अहसासो की यादे न्यारी !!

खाली हाथ आए इस जहाँ मे, खाली हाथ है जाना
बस रह जाएँगे यादो मे सुनहरी मुस्कान बनके,
तो फिर क्यू रहे उदास इस चुभन के साथ
और क्यू ना लुटाए प्यार और खुशी का ख़ज़ाना !!

Tuesday, August 7, 2012

मुठ्ठी बँधी



मुठ्ठी बँधी

वो एक प्यारी सी मासूम लड़की
मुस्कुराती झील सी आँखो वाली
उसकी वो शोखी वो अल्हड़ हँसी
अनायास ही ध्यान आकर्षित करती
रुनझुन पायल की खनक सी दिल मे बसी,

तभी बस मे चड़े कुछ उच्चखल लड़के
आते ही उनकी नज़र उसपर पड़ी,
चिपक गई उसके शरीर से उनकी नज़रे
जैसे गिद्ध देखे शिकार को झपटने को आतुर,

वो कुछ सहमी सकुचाई सिमट गई अपने मे कहीं
लगे वो उस संग खेलने जैसे माटी की गुड़िया कोई
बेबस आँखो मे नीर लिए देख रही वो सबकी तरफ
लोग बैठे थे बुत के मानिंद जैसे कुछ ना हुआ घटित,

उसकी नज़रो मे थे सवाल अनगिनत
क्या मेरी जगह होती बहन या बेटी तुम्हारी
तो भी पसरा होता यह मौन यहाँ?
क्या मुझ द्रौपदी की लाज बचाने,
नही अवतरित होंगे कृष्ण यहाँ

तभी एक अधेड़ महिला ने उठाई आवाज़
मानो युद्ध क्षेत्र मे गांडीब की टंकार
कब तक दम तोड़ेगी मानवता यहाँ,
मूक दर्शक बन तटस्थ रहने से अच्छा है
पहन लो काँच की चूड़िया,

एकाएक जागृत हुई एक नवीन चेतना
तन गये चेहरे सबके, उठ खड़े हुए हाथ कई
लगा बिखराव हमारा बन गया मुठ्ठी बँधी

उस लड़की के चेहरे की संतुष्टि देख लगा
मरी नही है इंसानियत यहाँ,
फिर जन्म लिया है मानवता ने आज
और यही है एक नवीन सुबह का आगमन
एक नयी सुबह का आगाज़!!

- किरण आर्या

Tuesday, July 24, 2012

अस्तित्व बोध



तुम सागर अथाह प्यार के.........,
मैं तटस्थ खड़ी किनारे पर सोचती हुई,
क्या अंजुलि मे भर पाऊँगी तुमको मैं कभी?

या रेत के मानिंद फिसल जाओगे उंगलिओ से मेरी,
इसी उहो पो मे खड़ी थी मैं विकल बड़ी,
तभी एक विचार ने दस्तक दी और खोली दिल की मेरी कड़ी,
क्यू ना मैं नदी बन जाउ कल कल बहती हुई !!
और विलीन हो जाउ तुममे उस पल समाती हुई,
मिटा दू अस्तित्व  अपना और बन जाउ हिस्सा तुम्हारा,
ना रहू तुमसे अलग और बनू किस्सा तुम्हारा !!

उसी क्षण पा लिया तुम्हे संपूर्ण रूप मे मैने,
और मिट गई मन की सारी तृष्णा.....,
क्यूकी जान गई मैं उसी एक क्षण मे,
कि तुम ही मोहन मेरे,तुम ही हो कृष्णा !!

तुम मे समा कर अस्तित्व  विहीन नही हुई मैं,
अब तुम मे ही झलकता है व्यक्तित्व मेरा,
अब मन मे नही है विचारो की लहर,
अब मन शांत है मेरा, आश्वत थमती लहरो सा !!

अब तुम मे हू मैं, और मैं बन गई तुम,
तुम आईना हो सोच का मेरी, मेरा अस्तित्व हो तुम !!


- किरण आर्या