आस की बाहं थामे एक भाव ..........
हम और तुम
एक नदी के
दो किनारे से
हाँ दूर सही
लेकिन बस
सुकून है इतना कि
साथ तो चल रहे है
हम और तुम
और है यकीन
दिल को मेरे कि
कहीं ना कहीं
जब संकरी होगी
ये नदी तो
मिलेंगे दो किनारे
और उन संग
जरुर हम और तुम
मुहाने पर खड़ी
आस है बाट जोहती
नदी के संकरे होने की
चाहत को पिरोती
गुनती बुनती
कुछ ख्वाब और उम्मीदें
सीप में छिपे मोती सी
भान उसे
नियति की नियत का
जो नदी के संकरे
होने पर भी
मिलन को बाधित
करने को है आतुर
लेकिन जिद उसकी
बुन रही एक ऐसा सेतु
जो होगा हताशा से परे
पूर्णिमा के चाँद की
मखमली चांदनी सी
मिलन की आभा
से परिपूर्ण
अपने रोष बहाव
को सही दिशा देने को
व्याकुल उसका मन
और उसके साथ-साथ
बहते बिखरते संभलते
जीते अपने-अपने
हिस्से की जिन्दगी
मैं और तुम
हम और तुम
एक नदी के
दो किनारे से
हाँ दूर सही
लेकिन बस
सुकून है इतना कि
साथ तो चल रहे है
हम और तुम
और है यकीन
दिल को मेरे कि
कहीं ना कहीं
जब संकरी होगी
ये नदी तो
मिलेंगे दो किनारे
और उन संग
जरुर हम और तुम
मुहाने पर खड़ी
आस है बाट जोहती
नदी के संकरे होने की
चाहत को पिरोती
गुनती बुनती
कुछ ख्वाब और उम्मीदें
सीप में छिपे मोती सी
भान उसे
नियति की नियत का
जो नदी के संकरे
होने पर भी
मिलन को बाधित
करने को है आतुर
लेकिन जिद उसकी
बुन रही एक ऐसा सेतु
जो होगा हताशा से परे
पूर्णिमा के चाँद की
मखमली चांदनी सी
मिलन की आभा
से परिपूर्ण
अपने रोष बहाव
को सही दिशा देने को
व्याकुल उसका मन
और उसके साथ-साथ
बहते बिखरते संभलते
जीते अपने-अपने
हिस्से की जिन्दगी
मैं और तुम
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteशुक्रिया राजीव जी ............शुभं
Deleteशुक्रिया राजेन्द्र जी .............शुभं
ReplyDeletenice expression ......
ReplyDeleteसुप्रभात निवेदिता जी ...........शुक्रिया ..........शुभं
DeleteAsha hi bharosa hai ...sundar abhivyakti
DeleteNew post तुम कौन हो ?
new post उम्मीदवार का चयन