Wednesday, April 16, 2014

राधा तू है, कृष्ण भी तू



वो अनछुई सी मासूम कली
उसके मन का भय
कर गया विचलित मुझे
भय दिखता जो
उसकी बड़ी बड़ी आँखों में
हर नज़र से हर स्पर्श से
घबरा मुरझा जाती
छुईमुई के फूल सी वो
उसकी खीज दिखती
जब लोग कहते
कुटिल मुस्कान के साथ 
कि आओ करे
संबंधो की शुरुवात
एक मुलाकात से क्यूकि
हमारे संबंधों की मधुरता
और सामीप्य पर ही
निर्भर है तुम्हारी सफ़लता
समझ गई ना?
वो सिहर उठती अपने शरीर के
उभारों को ढकने के
असफल से प्रयास संग
स्त्रीजनित एक गुण
मिला उसे विरासत में
नज़रों को भावो को पहचानने का
ये उसका अस्त्र भी
और उसके भय का कारन भी
छिपा उसे अपने आँचल में
मैंने प्यार से दुलारते हुए कहा
लाडो मेरी डरते वो है जो गलत है होते
और डर से डरोगी जितना
वो होगा हावी वजूद पर तुम्हारे
हिम्मत तुम्हारी
कर देगी परास्त उसे
करो सामना उसका
आँख से आँख मिला देखना
कद उसका हो जाएगा बौना तुम्हारे समक्ष
बनो निडर डरो नहीं
अभी छूने है तुम्हे आसमां कई
गाली देना नारी के व्यक्तित्व के लिए
अशोभनीय है....
लज्जा संकोंच चुप्पी सहनशीलता
आभूषण नहीं बेड़ियाँ है
निकाल फेंको इसे मन से
जहाँ सामने है आतुर
तुम्हारे वजूद को निगलने को
उसे अस्त व्यस्त करने को
छिन्न भिन्न कर देने को
अनेको सर्प विकृतियों के
वहां उनका सामना करो
उनकी ही भाषा में
ये जरुरी है उन्हें पता होना
कि गर स्त्री मर्यादा की सीमा से है बंधी
तो समय पड़ने पर वो बन सकती
मरखनी गाय भी
तुम्हारा डर बना रहा तुम्हे
कूप मंडूक या
सीप में छिपे उस मोती सा
जो अपने खोल में खो देता अस्तित्व
तुम्हारी कमजोरी बनती सबल
उनके लिए जो
फायदा उठाने की कला में है माहिर
अबला कहकर पोषित करते वो
तुम्हारे डर को और बेड़ियाँ
स्त्रीत्व को प्राप्त करने की
बेड़ियाँ डाल तुम्हारे पैरो में
बिठा देते वो तुम्हे देवत्व के आसन पर
तो तोड़ दो हर एक वो बंधन
जो बनाता है कमजोर तुम्हे
केवल उपभोग की वस्तु
या एक मात्र रंधर नहीं हो तुम
जो समेट लोगी व्यर्थ की वासना अपने अंतर,
मुख खोलो और थूको चेहरों पर,
और बना दो दागदार हमेशा के लिए,   
तो समझो और बढ़ाओ कदम और
कदम बढाने से पहले स्वयं में
भरो एक उजास एक विश्वास
कि नहीं डरूंगी विकृत मानसिकता से
करुँगी सामना डटकर
                                                हर मुश्किल पल का हंसकर हाँ मैं हंसकर 
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