बीते समय की है बातें
भूले बिसरे से है फ़साने
ख़ुशी और गम होते थे
साझा से
सांझी होती थी छत
एक रसोई की खुशबू से
महकता था
दूजे घर का आँगन
पडोसी की ख़ुशी से
थिरकते थे कदम जहाँ
उनके गम से
नम हो जाते थे
दिल के जज़्बात भी ........
आज भी होती है साझेदारी
फर्क फ़कत इतना है
पडोसी की ख़ुशी
दे जाती है
गम के काले साये
अमावस की रात से
कुछ बेचैनी साँसों को
और गम उसका
कर जाता है रोशन
आँखों के टिमटिमाते से दीये......
आधुनिकता का जामा पहने
गरूर से नैन मटकाती सी
साझेदारी
दंभ से कहती
दस्तूर निभा रही
मैं भी जमाने का
रास आ ही गया
हुनर मुझे
मुखौटें लगा चेहरे पर
नित नए मुस्कुराने का
*************
भूले बिसरे से है फ़साने
ख़ुशी और गम होते थे
साझा से
सांझी होती थी छत
एक रसोई की खुशबू से
महकता था
दूजे घर का आँगन
पडोसी की ख़ुशी से
थिरकते थे कदम जहाँ
उनके गम से
नम हो जाते थे
दिल के जज़्बात भी ........
आज भी होती है साझेदारी
फर्क फ़कत इतना है
पडोसी की ख़ुशी
दे जाती है
गम के काले साये
अमावस की रात से
कुछ बेचैनी साँसों को
और गम उसका
कर जाता है रोशन
आँखों के टिमटिमाते से दीये......
आधुनिकता का जामा पहने
गरूर से नैन मटकाती सी
साझेदारी
दंभ से कहती
दस्तूर निभा रही
मैं भी जमाने का
रास आ ही गया
हुनर मुझे
मुखौटें लगा चेहरे पर
नित नए मुस्कुराने का
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आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (22.08.2014) को "जीवन की सच्चाई " (चर्चा अंक-1713)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
ReplyDeleteबढ़िया व सुंदर लेखन , किरन जी धन्यवाद !
ReplyDeleteI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
sundar abhivyakti
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट...
ReplyDeleteआज का कटु सत्य यही है
ReplyDeleteवर्तमान समय का यही सच है,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर ----
आग्रह है- मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
हम बेमतलब क्यों डर रहें हैं ----
वर्तमान पर ज्वलंत कटाक्ष .....
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