Tuesday, September 9, 2014

बातें सीली सी

आंखें हाँ आंखें
कह जाती सब
अच्छा बुरा झूठ सच
कभी हंसकर कभी बहकर
कहना उनका होता सार्थक
जब समझ होती परिपक्व
भांप लेती झांक लेती शब्दों से परे
बेंधती असमंजस के मकड़जाल को.......

वर्ना तो आँखों की अथाह गहराइयों में
डूब जाती अनगिनत बातें
जो खो देती अपना अस्तित्व
आँखों के सागर में गोते लगाती
डूब जाती थककर पैठ जाती
तलहठी में कहीं
सीले से काई से सने
किसी कोने को थाम.......
 
समय के गर्भ में सिसकती निरंतर
जब पीढ़ा उनकी हो जाती असहनीय
तो रिसने लगती पीब सी
आँखों के कोरों से लेकिन कसक उनकी
कहाँ लेने देती है चैन
वो तो नासूर बन टीस लिए कराहती
उम्र भर आँखों के पथराने के इंतज़ार में.......
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शुक्रिया