शब्द
पूर्ण समर्पण है मांगते
अधूरे मन से
कुछ नहीं होता हासिल
शब्द
समय के मोहताज़ नहीं होते
शब्द
पूस की दुपहरी में
सूरज की आंच पा मुस्कुराते है
शब्द
वक़्त की तेज़ आंधी में
कभी उड़कर कहीं खो जाते है
शब्द
बारिश में भीग कर
कभी सीले से नज़र आते है
शब्द
जेठ की गर्म लू
में झुलस धूमिल हुए जाते है
शब्द
मरू की भटकन में कभी
मृगतृष्णा के मोह में नीर बहाते है
शब्द
को अगर राह मिल जाए
तो इन्द्रधनुष से ये बिखर जाते है
शब्दों को
मोहलत की अलगनी पर छोड़ देना
स्वयं को
परिस्थिति से बहलाना भर ही तो है
शब्द
होते बावरे
अपनी मर्जी के मालिक
थोड़ी सी ढील
में फिसल जाते रेत की तरह
शब्द
छोड़ते ही हाथ
उड़ जाते आवारा बादल बन
और ये बादल
बरस जाते फिर कहीं और
तुम्हारे आँगन में
रह जाती केवल तपिश उनकी
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शुक्रिया