कौन हूँ मैं??????????
हर युग में छला मुझे मेरे अपनों ने ही,
कभी सीता बन अग्निपरीक्षा दी मैंने,
कभी द्रोपदी बन सही चीर हरण की पीड़ा मैंने !!
आज मैं आधुनिक नारी कहलाती हूँ,
ज़माने संग कदम से कदम मिलाती हूँ,
और इठलाती हूँ अपने आप पर,
शायद इतने समय दबाये कुचले जाने की,
पीड़ा ने ही भर दी है उच्खलता मुझमे !!
चाहती हूँ अपराजित बनना छलना चाहती हूँ,
अपने छलिया को जिनके हाथों छली गई हर युग में,
लेकिन भूल जाती हु क्यों मैं आज भी जब घटित होता है,
कुछ गलत हर ऊँगली उठ जाती है मेरी और ही,
हर आँख में छिपे आक्षेप धिधकारते मुझे ही !!
मैला होता आँचल मेरा ही जब उड़ता गर्त कहीं,
अपनी धरोहर को सहजने का भार है मेरे ही कंधो पर,
हर दुःख हंसकर सहती फिर भी अबला कहलाती मैं !!
यह इन्तहा नहीं है मेरे इम्तिहानो की,
मुझपर उठती उंगलिया पकडे खड़ी मेरी परछाई भी,
पाक साफ़ दामन लिए मुस्कुराते छलने वाले मुझे,
और मैं खड़ी अपनी ही परछाई के अनगिनत सवालो से घिरी,
सोच रही आज भी यहीं कौन हूँ मैं????????????............किरण आर्य
bahut khoob
ReplyDeleteyahi bhedbhav ki prampara abhi bhi bahut kam nahi huyee hai..
ReplyDeletebas surat hamein hi badalni hogi..
bahut badiya umda rachna..