तुमने कहा प्यार मुझे तुमसे
मैं भीग उठी मीठे अहसासों में
सपने रुपहले लगी बुनने
कदम आसमां लगे छूने
नयनों में लहराने लगे
लाल रक्तिम डोरे
मैं भीग उठी मीठे अहसासों में
सपने रुपहले लगी बुनने
कदम आसमां लगे छूने
नयनों में लहराने लगे
लाल रक्तिम डोरे
प्रेम की पीग बढ़ाती मैं
विचरने लगी चांदनी से
नहाई रातों में
भोर की पहली किरण सी
चमकने लगी देह
प्रेम तुम्हारा
ओढ़ने बिछाने लगी मैं
जीवन हो गया सुवासित
होने लगा उससे प्यार
फिर यथार्थ का कठोर धरातल
कैक्टस सी जमीं
लहुलुहान होते सपने बिखरी सी मैं
पर सुकूं तू हाथ थामे था खडा
वक़्त के निर्मम थपेड़े
उनकी मार देह और आत्मा पर
निशां छोडती अमिट से
मरहम सा सपर्श तेरा
रूह को देता था क़रार
फिर एक दिन तुमने कहा
मुक्ति दे दो मुझे
नहीं मिला सकता
कदम से कदम
नहीं बन सकता अब
हमकदम हमसफ़र तेरा
मुश्किल थे वो पल
दुरूह से मेरे लिए
तुम्हारे दूर जाने की सोच ही
दहला देती थी हृदय को
मैंने देखी बेचैनी
तुम्हारी आँखों में
तड़पती मछली सी कसक
और उसी क्षण मुठ्ठी से
फिसलती रेत सा
कर दिया था आज़ाद तुम्हे
तुम दूर होते गए
और फिर हो ओझल
निगाहों से मेरी
आज जब याद करती तुम्हे
एक परछाई सी
नज़र आती है बस
हाँ अहसास जीवंत से है
अब साथी मेरे
जिन्होंने जीना सिखाया मुझे
****************
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (01-09-2013) के चर्चा मंच 1355 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteअरुण भाई शुक्रिया तुम सब का ये स्नेह सहयोग ही मेरा सबल है ...........
Deleteअनमोल अहसास की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletelatest post नसीयत
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - सोमवार -02/09/2013 को
ReplyDeleteमैंने तो अपनी भाषा को प्यार किया है - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः11 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
सुन्दर रचना
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteकृपया वर्ड वेरिफिकेसन हटा दें किरण जी .. कमेन्ट करना आसान होता है ..
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteकोलाज जिन्दगी के : अगर हम जिन्दगी को गौर से देखें तो यह एक कोलाज की तरह ही है. अच्छे -बुरे लोगों का साथ ,खुशनुमा और दुखभरे समय के रंग,और भी बहुत कुछ जो सब एक साथ ही चलता रहता है.
http://dehatrkj.blogspot.in/2013/09/blog-post.html
itni sundar abhivyakti hai apki ki mere pass shabad nahi bayan karne kay liye...bas mehsoos kar sakti hu
ReplyDeleteकोमल भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDelete:-)
गीत कोई भी हो सुंदरी या शालिनी !
ReplyDeleteचंचला स्वागता हरिणी या मालिनी !
‘संपादिका’ थी तुम, जब कहा तुमने!!
कान्त! वंशस्थ….., न छंद रचो प्रिये,
मैं पी गया पीर जब भी चाहा तुमने !!
(डॉ० लक्ष्मी कांत शर्मा )
बहुत सुन्दर रचना सखी...अविरल बहती हुयी नदी सी !
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