Tuesday, October 9, 2012

ए मन क्यों भरमाये रे,
जो तेरा है तेरा ही रहे,
उसको ना कोई छीन सके,
मन ज्योति जले और रूह संवरे
ए मन क्यों भरमाये रे,
जो तेरा है तेरा ही रहे..........

जो बीते समय सा छोड़ चला,
कब तेरा था क्यों भ्रम पले,
क्यों उसके लिए नयन मोती झरे,
क्यों उसके लिए तन चिता जले,
ए मन क्यों भरमाये रे,
जो तेरा है तेरा ही रहे..........

जो अपना है तेरा सपना है,
वो हरदम तेरे साथ रहे,
आँखों में पले भावो में रहे,
और प्रेम की नई रीति बुने,
ए मन क्यों भरमाये रे,
जो तेरा है तेरा ही रहे.........

गर हो जाए कभी दिग्भ्रमित,
तो राह देख उस अपने की,
इक दिन उस राह लौट आएगा,
जो राह तेरी ही चौखट से मिले,
ए मन क्यों भरमाये रे,
जो तेरा है तेरा ही रहे...........

जो विकल्पों की राह पे चले,
वो प्रेम की रीत को क्या समझे,
वो तो भंवरा है इक ऐसा
रसपान करे और आगे बढे,
प्रेम तो खेल है उसके लिए,
ए मन क्यों भरमाये रे,
जो तेरा है तेरा ही रहे..........

जो प्रीत सच्ची सम मीरा सी,
आँखों में पले और रूह में बसे,
वहीँ प्रीत अमर जो निस्वार्थ रहे,
दो मन में रहे एक तन ही दिखे,
ए मन क्यों भरमाये रे,
जो तेरा है तेरा ही रहे...........

इक रिश्ता जो हो देह से परे,
तन ना भी दो मिल पाए,
अहसासों के अखियों में द्वीप जले,
ए मन क्यों भरमाये रे,
जो तेरा है तेरा ही रहे.........किरण आर्य 



3 comments:

  1. Ye man to aise hi kahan nahi bhagta.. kahan nahi daurta, kya nahi pana chahta...:)

    bahut behtareen rachna...!

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  2. जो अपना है तेरा सपना है,
    वो हरदम तेरे साथ रहे,
    आँखों में पले भावो में रहे,
    और प्रेम की नई रीति बुने,
    ए मन क्यों भरमाये रे,
    जो तेरा है तेरा ही रहे.........

    वाऽह ! क्या बात है !
    सुंदर भाव ! सुंदर शब्द !

    बहुत सुंदर गीत लिखा है आपने
    किरण जी !
    …और इक रिश्ता जो हो देह से परे
    कह कर आपने प्रेम की पराकाष्ठा का दर्शन प्रस्तुत कर दिया


    सुंदर भाव और सुंदर शब्दों से सजी गीत रचना के लिए बधाई …
    आभार !

    शुभकामनाओं सहित…

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  3. कविता अच्छी है , लिखती रहें , शुभकामनाये

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शुक्रिया