Friday, November 29, 2013

उजास

स्तब्ध हर सांस है
रो रहा आकाश है
हर तरफ विनाश है
मानवता का ह्रास है !

सिसकते एहसास है
क्या ये विकास है ?
या सृष्टि का नाश है
देवों का जहाँ वास है
अब वहां विनाश है !

महत्वाकांक्षा की खाज़ है
रो रहा आह मधुमास है
मानुष तन जो खास है
रक्त रंजित सा मॉस है !

प्राण अब निश्वास है
भटकती सी प्यास है
अँधेरे जो बेआवाज़ है
मन के आस पास है !

फिर भी मन में विश्वास है
आने वाली सुबह एक उजास है
दीये सी झिमिलाती आस है
आँखों में चमकता प्रकाश है

होंटों पर निश्छल सा सुहास है
मन की ये अडिग आवाज़ है
जहाँ आस है जिंदगी में मिठास है
मधुर जो मिठास है सबसे खास है !!

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3 comments:

शुक्रिया