Monday, August 13, 2012

हम - तुम


हम-तुम



हम और तुम जब मिले, तो वो बने हम तुम,
ना हम रहे हम और ना तुम हे तुम !
हम है सागर अथाह तो उसका किनारा हो तुम,
उसकी सतह एक सद विचार हैं हमतो उसकी अभिव्यक्ति हो तुम,
हम शरीर है तो उसकी आत्मा हो तुम,
हम दिल है तो उसकी धड़कन हो तुम
हम आस्मा मे उड़ती पतंग है तो उसको सहारा देती डोर हो तुम
हम आस्मा मे उड़ता पंछी हैं उन्मुक्त, तो उस पंछी की मंज़िल हो तुम
हम जीवन की गति है तो ठहराव हो तुम
हम है पूरक जीवन का, तो जीवन का संपूरक हो तुम
हम दृष्टि है अहसासो की तो उनको देखने का अहसास हो तुम
तुम बिन अधूरा है जीवन मेरा और जीवन की सार्थकता हो तुम
मैं और तुम दिखते है दो लेकिनतुम ही मैं हूँ और हममे निहित है हम तुम
सब को प्रेम का संदेश है पढाते हम-तुमदिलो मे प्रेम की ज्योत है जलाते हम-तुम....!

- किरण आर्या 

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