Monday, August 27, 2012

आम आदमी



हाँ मैं आम आदमी हूँ भीड़ के साथ कदम मिला चलता हूँ भेड़चाल में विश्वास करता हूँ
भ्रष्टाचार मेरा ही तो किस्सा है जब काम बिगड़ता देखता हूँ तो इसका हिस्सा बनता हूँ
कुए के मेंढक सा निज स्वार्थो और खुशियों में पलता हूँ पडोसी की देख ख़ुशी जलता हूँ
हाँ मैं आम आदमी हूँ भीड़ के साथ कदम मिला चलता हूँ भेड़चाल में विश्वास करता हूँ

भीरु है प्रकृति मेरी मन ही मन डरता हूँ साहसी बनने का ढोंग मैं रचता हूँ
आक्रोश को शब्दों से ढकता हूँ समझ कर्तव्य की इति, दिनचर्या में लगता हूँ
रोज़ बिखरता हूँ, उठता हूँ, सिस्टम को धिक्कार के अपनी तुष्टि मैं करता हूँ
हाँ मैं आम आदमी हूँ भीड़ के साथ कदम मिला चलता हूँ भेड़चाल में विश्वास करता हूँ

इंसानियत होती जब शर्मसार कही तो मूक दर्शक मैं बेबस सा दिखता हूँ
अपने जमीर की नजरो में होने खरा, पीडित को कटघरे में खड़ा करता हूँ
कदमो में रख ज़माने को चलता हूँ दुसरो के दुःख दिखते नहीं, सभ्य बनता हूँ
हाँ मैं आम आदमी हूँ भीड़ के साथ कदम मिला चलता हूँ भेड़चाल में विश्वास करता हूँ

निज में है निहित अस्तित्व मेरा, महानता की खोखली बातें मैं करता हूँ
तर्क कुतर्को की रुपरेखा संग, अपने को हर दशा में सही साबित मैं करता हूँ
मर रहा जमीर मेरा हर पल प्रतिपल जानता हूँ ये भी लेकिन फिर भी जाने क्यों
हाँ मैं आम आदमी हूँ भीड़ के साथ कदम मिला चलता हूँ भेड़चाल में विश्वास करता हूँ

जब निष्ठूर नियति करती है वार तो इस यथार्थ से हो रूबरू टूट के बिखरता हूँ
होता वेरगे का भाव प्रबल मोहमाया सा लगता जीवन एक रुदन सा पिघलता हूँ
विछोह किसी अपने का सहना मुश्किल फिर भी हो खड़ा दिनचर्या में जुटता हूँ
हाँ मैं आम आदमी हूँ भीड़ के साथ कदम मिला चलता हूँ भेड़चाल में विश्वास करता हूँ
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                                                             किरण आर्य

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शुक्रिया