Wednesday, August 29, 2012

कविता का जन्म



[क्‍या उन डायरियों में......किनारों से फटे कुछ पन्‍ने....कुछ बिना वजह की तारीखें....आधी अधूरी इबारतें....कुछ पुराने पते...जहां अब कोई नहीं रहता....नहीं....इन सब बातों से कविता नहीं बनती..........माया मृग
तुम्हारा ना होना भी होना है / जो पलको
ं पर सोता है / शब्दों में जगता है / जाने क्या लिखता है / मैं नहीं जानती / तुम जानते हो तो कहो /क्या यही कविता है ? .है ही..........गीता पंडित
माया मृग जी और गीता दी के स्टेटस से प्रेरित............]

कविता हाँ मन के गर्त में सोती सी कुछ यादें
जो खो गई धुंधली हो गई वक़्त के थपेड़ो तले
आज जब उस गर्त को टटोला फिर से तो
एक धुंधली सी परछाई सामने खड़ी नज़र आई

लेकिन उसके सामने आते ही
उसी शिद्दत से फिर तेरी याद आई
हाँ आज भी कहाँ तुझे भूल पाया
तेरी खुशबू तेरा साया फिर मुस्कुराया
जो कविता रह गई थी अधूरी कभी
आज फिर दिल उसे रचने को
आतुर सा नज़र आया............

हाँ ये सोच जो हुई थी विकसित
कविता यादों की गर्त तले दबे
अहसासों से नहीं उपजती
आज भ्रम सी प्रतीत हुई और मन ने कहा
कि भाव वो चाहे कहे हो या अनकहे
दबे हो मन के कोने में या मुखरित से
जब सहलाती यादें उन्हें तो जन्म लेती
उन्ही अहसासों से एक कविता.........किरण आर्य

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