यथार्थ के कठोर धरातल से टकराकर
मासूम जिंदगी सिसकती क्यों है.....
मासूम जिंदगी सिसकती क्यों है.....
शायद आदत में शुमार नहीं था उसकी
हवा के विपरीत चलने पे संभलना....
इसीलिए तो रूह उसकी हो रक्तरंजित
इसीलिए तो रूह उसकी हो रक्तरंजित
पाने को वजूद भटकती यूँ है.....
गर लड़ना है आँधियों से उसे
तो खुद ही संभलना होगा.........
चलना होगा निरंतर एक नई आस संग
और देंगे होंगे मायने खुद को खुद ही..............किरण
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शुक्रिया