Thursday, September 20, 2012

टीस

बेटी जो होती है माता पिता के आँगन की शान,
उनका अभिमान और माथे का होती है मान,
शादी के बाद क्यों हो जाती इतनी पराई,
आती जब मायके अपने आँखों में लिए वो आंसू,
दीखता नही दर्द उसका होता एक ही सवाल,

कब जाओगी तुम घर अपने लौटकर,
अनायास ही कर जाता उसे पराया,
क्यों बेटी जो होती है जिगर का टुकड़ा,
लगने लगती अनायास ही चिता की लकड़ी सी,
क्यों सम्मान माता पिता का और
समाज की नजरो के सवाल जो बेध देते है
सम्पूर्ण अस्तित्व को उसके,
हो जाते है क्यों बड़े सुरसा के मूह से,
बेटी के प्रति स्नेह को लील जाते वो,
बेबस और मूक बेटी जब चढ़ जाती बलि,
उसकी सूनी आँखों में रह जाता दर्द
बेटी बन एक अभिशप्त जीवन जीने का,
तब माता पिता की आँख के आंसू
चिता की उस लकड़ी के राख हो जाने का इंतज़ार करते
रह जाते जाने क्यों आँखों के कोरो को डुबोते......
 

No comments:

Post a Comment

शुक्रिया