Thursday, September 17, 2015

दुनियावी कोहराम

साहित्यकार रंगनाथ मिश्र चाहे उस कहावत को चरितार्थ करने हेतु झुके हो, कि फलदार वृक्ष ही है झुकते, और इसमें उनकी सहजता या सरलता या भाव नहीं देखा लोगो ने बस ऊ गाना है ना के "कुछ तो लोग कहेंगे लोगो का काम है कहना" बस आँख मींच उसका अनुसरण करने लगे......जान ले ली है बन्दे की.....झुकना घोर अपराध हो गया हो जैसे, इस देश में एक बच्ची के साथ बलात्कार कर कुकर्मी बेशर्मी से सीना तान दांत निपोरता है उसका कुछ नहीं एक सज्जन पुरुष कदमो में झुक लिए उसका बवाल मचा दिए हद है जी......अरे भाई अंधभक्ति भक्तिभाव भी कोई चीज़ होती है.......भाव विभोर हो झुक गए तो क्या हुआ जी ?.....दुनिया झुकती है, सफलता के समक्ष तो सूरज और चाँद भी शीश नवाते जी......अब रंगनाथ जी को अखिलेश यादव में कृष्णा दिख गए और वो भावुकिया गए तो क्या बुरा जी ? सगरा साहित्य जगत मिडिया जगत सक्रीय हो उठा इस महापाप के लिए मिश्र जी को गरियाने को.......कोई साहित्यकार अपनी गरिमा का भान कर सीधे मूह बात न करे तो लोग कहते साहित्य विनम्र बनाता ये कैसे साहित्यकार भला ? जो विनम्र होकर झुक गया वो महापापी हुआ......साहित्य का नाम कलंकित करने वाला......अरे भाई जमाने का चलन यहीं कि चापलूसी और मक्खन लगाने की कला में जो माहिर वो सफल भी और बड़ा भी......तो गर ये अपना लिए उसे तो क्यों इत्ता हल्ला जी?.......जी हजुरी करके कितने ही यहाँ महान हुए, सो फिर एक और इस श्रेणी में हुए शामिल तो क्यों गिला ?.........दिल्ली से दुनियावी कोहराम पर मुस्कुराती खरी खरी के साथ खुराफाती किरण आर्य.......:)

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शुक्रिया