Thursday, September 24, 2015

खरी खरी (कुंठित मानसिकता)

नमस्कार मित्रो आज दिमागी कीड़े तनिक बौखलाए हुए है.......छत्तीसगढ़ बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन की ओर से छपने वाली एक किताब में महिलाओं के कामकाजी होने को बढ़ती बेरोजगारी का दोषी बताया गया है. देश की आर्थिक समस्याएं और चुनौतियां वाले चैप्टर में यह कहा गया है कि आजादी के बाद देश में बेरोजगारी इसलिए बढ़ी, क्योंकि हर सेक्टर में महिलाओं ने काम करना शुरू कर दिया है.....यानी महिलाओं का काम करना गुनाह हो गया, जाने क्यों महिलाओं को अक्सर सहजता से कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है ? शायद ये रीत हो गई है, यहीं तो होता आया है सदियों से.....देश को आज़ाद हुए इतना समय हुआ लेकिन ससुरी मानसिकता अभी भी गुलाम ही रह गई, कहते है जीवन परिवर्तनशील है रुत बद्लती है, मौसम बदल जाते है, सदिया है बीतती और युग बदल जाते है, फिर मानसिकता काहे आज भी वहीँ बंधी एक खूटे से अंगद के पाँव सी....आज हम आधुनिक होने का दम भरते है, फिर मानसिकता आज भी क्यों स्त्री को लेकर कुंठित सी है ? ये कटु सत्य है जो अपच का कारण हो सकता है.....मानती हूँ परिवर्तन की गति धीमी होती है.....लेकिन एक विशेष वर्ग की बात छोड़ दे तो माध्यम वर्गीय स्त्रियाँ आज भी इस पीड़ा से मुक्ति राह खोजने में लीन है, क्या करे समाज परिवार की इज्ज़त उनके कंधो पर जो टिकी है......यहाँ दोषी केवल एक कुंठित मानसिकता है कोई वर्ग विशेष नहीं, और कुंठा से कोई भी ग्रसित हो सकता है.......ये ध्यान रहे.......दिल्ली से खरी खरी के साथ खुराफाती किरण आर्य

No comments:

Post a Comment

शुक्रिया