नमस्कार मित्रो अभी कुछ दिन से लगातार चर्चा में कि फेसबुक पर जल्द ही डिसलाइक का बटन आ रहा है, सुनकर ही दिल डूबने सा लगा सच्च.....अरे घबराए नहीं विचारों के समुन्द्र में जी.....पहले ये होता था कि आपको जो पसंद नहीं आप उसकी पोस्ट पर नहीं झांकेंगे न पढेंगे न कोई टंटा एक मौन सहमती कि आपको मैं पसंद नहीं, तो आप देखे नहीं मैंने क्या लिखा और मुझे आप पसंद न तो मैं आपकी तरफ पीठ भी काहे करू ? यानी शीत युद्ध चलता था.....लेकिन अभी तो शीत युद्ध जैसी पुरातन प्रथा को नेस्तानाबूद करने की तैयारी जी.......हम अपने संस्कारों और प्रथाओं के नाम पर बहुत सी सही और बहुत सी गलत प्रथाओं का निर्वाह आँख मूंदकर करते आये है, और चाहते हमारी भावी पीड़ियाँ भी गलत सही के फेर में पड़े बगैर उनका अँधा अनुकरण करती चले....खैर ये बावरा मन भी न.....भटकन इसकी क्या कहे प्रथाओं के चक्कर में भटक लिया....तो हम आते है मुद्दे पर....अब होगा ये कि जिससे आपकी जरा भी खुडक हो सीधा जाके पोस्ट पर उसकी डिसलाइक का बटन दबा उसको ये बता देने का कि भैये तुम्हारा लेखन एकदम दो कौड़ी का है, और गर आप गुटबाजी के समर्थक तो भाईचारे का निर्वाह करते अपने बंधुवरो के माध्यम से डिसलाइक करा करा बन्दे को अवसाद के गर्त में पंहुचा देने का, ताकि बन्दा लेखन से तौबा कर ले, और फ़तवा जारी कर दे कि मेरी आने वाली सात पुस्त में कोई लिखने का सोचेगा भी नहीं.......हाँ हम जैसे कुछ चिकने घडो की बात अलग है, हमें तो कोई डिसलाइक करे तो हम उसका तहेदिल से शुक्रिया अदा करेंगे, क्युकी उनके डिसलाइक की वजह से लोगो में जिज्ञासा उत्पन्न होगी की भईये आखिर लिखने वाले ने ऐसा क्या लिखा कि इत्ते महानुभाव उसे नापसंद कर रहे है ? उससे होगा ये कि हमारी बात अधिक लोगो तक पहुचेगी, पाठकों की संख्या बढ़ना यानी लिखना सार्थक हो जाता.......और नापसंद करने वालो में कुछ मशहूर तथाकथित अच्छे लेखक हो तो पूछिये मत आपकी तो किस्मत ही चमक गई साहब........खैर ये तो है मेरे बावरे से मन की बात आपकी आप सोचिये जनाब..........दिल्ली से खरी खरी के साथ खुराफाती किरण आर्य
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शुक्रिया